सत्य कथा: एक बार एक अमरीका वाले प्रवासी भारतीय ने रात के दो बजे ईमेल भेजा. और फिर एक और ईमेल भेजा सुबह के पांच बजे गुस्से में की उसके ईमेल का जवाब क्यों नहीं दिया गया तीन घंटों में. मैंने बोला भाई अपनी एंटाइटलमेंट को पिछवाड़े में डाल ले और मुझे सोने दे. देश का सब कुछ तो भूल चुका है, क्या ये भी भूल गया की कब दिन होती है और कब रात?
ये जनाब अव्वल दर्जे के संघी थे जो अमरीका में बुढ़ापा गुज़ार रहे थे और दिन प्रतिदिन गुस्से में ओपिनियन पीसेज लिखते थे भारत के बारे में. किस प्रकार हम सब अपनी संस्कृति भूलते जा रहे हैं और किस प्रकार विदेशी सभ्यता का असर भारत पर बढ़ता जा रहा है. और इस प्रजाति के कई जंतु मिलेंगे आपको प्रवासी भारतियों के जंगल में. अपनी ज़िन्दगी एक आज़ाद देश में मस्त गुज़ारते हुए और साथ ही साथ ख़डूसों की तरह भारत के अल्पसंख्यकों और प्रताड़ित वर्ग के लोगों के लिए अपशब्द लिखते हुए. इनके झांसे में मत आइयेगा.
ये वो मूर्ख हैं जो अमरीका में रहते हुए चाहते हैं की उन्हें अल्पसंख्यकों को प्राप्त हर संरक्षण प्राप्त हो, लेकिन भारत के अल्पसंख्यकों को वो मूलभूत सुविधाएं भी नहीं देना चाहते जो हर मनुष्य को मिलनी चाहिए. ट्रम्प को देख कर इनके पाजामे ख़ुशी से गीले हो जाते हैं और फिर ये उन लोगों को रेसिस्ट कह देते हैं जो नस्लवाद के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं.
संघी मानसिकता वाले इन तोतों के सच को देखें. भारत और अमरीका विश्व के दो बड़े लोकतंत्र हैं. हमारे भविष्य एक दुसरे से जुड़े हुए हैं. घृणा और डर के माहौल बनाने वाले ये लोग दोनों देशों के लिए चिंता का विषय होने चाहिए.
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